बांदा
स्मृति पुराण - दूसरी किस्त
आज से ४५
साल पहले बांदा जाना हुआ । अवसर था केदार अग्रवाल द्वारा सब रंग के प्रगतिशीलों का
एक व्यापक सम्मेलन । पांचवे दशक के अंत में प्रगतिशील लेखक संघ के अंत के बाद नई कविता-नई
कहानी,
अकविता-अकहानी, बीट, भूखी,
युयुत्सु आदि पीढ़ियों से होकर जब सत्ता से मोहभंग के बाद जनवादी
स्वर प्रबल होने लगे तो लेखक संगठन बनाने के प्रयास नए सिरे से शुरू हुए । इसमें
पहल की केदारनाथ अग्रवाल ने जिन्होंने डॉ. रणजीत और स्थानीय सी.पी. आई. के सहयोग
से बांदा में फरवरी, १९७३ में
यह दो दिवसीय सम्मेलन बुलाया । उसमें उस समय के नए-पुराने महत्व के अधिकांश लेखकों
ने भाग लिया । उद्घाटन महादेवी जी को करना था लेकिन उनके न आने पर किया अमृतराय जी
ने ।
सम्मेलन
में उपस्थित १०० के करीब लेखकों में से कुछेक नाम थे –
सज्जाद जहीर, शिवदान सिंह चौहान, मन्मथनाथ गुप्त, नागार्जुन, केदारनाथ
अग्रवाल, त्रिलोचन शास्त्री, विजेंद्र,
भगवत शरण उपाध्याय, शिवकुमार मिश्र, खगेंद्र ठाकुर, सुरेंद्र चौधरी, धूमिल, राजेश जोशी, सव्यसाची,
राजीव सक्सेना, रणजीत, चंद्रभूषण
तिवारी, श्याम बिहारी राय, सनत कुमार,
उदभ्रांत, आनंद प्रकाश, ललित
मोहन अवस्थी, सुरेंद्रनाथ तिवारी, सुधीश
पचौरी, कर्ण सिंह चौहान आदि ।
दो दिन तक
चला यह सम्मेलन इस अर्थ में ऐतिहासिक था कि यह नई परिस्थितियों में लेखकों के मन
में संगठन की अदम्य इच्छा को वाणी देने का सार्थक मंच बना जिसमें संगठन के आधारों
पर गहन चर्चा हुई और तीखी बहस हुईं । इस सम्मेलन में ३३ लोगों की एक अखिल भारतीय
संयोजन समिति बनाई गई । इस सम्मेलन की गतिविधियां और उसके बाद हुए स्थानीय सम्मेलन
संगठन की बहसों में महत्वपूर्ण हैं । उसी सब को संचयित,
संयोजित और संकलित करने को बांदा की यह यात्रा है । आगे जो होगा वह
तो बाद में फिलहाल जो हो चुका वह यहां ‘बांदा स्मृति पुराण’
में धारावाहिक होगा ।
मंगलाचरण
के तौर पर वे दो प्रसिद्ध कविताएं दी जा रही हैं जो केदार और नागार्जुन ने एक-दूसरे
पर लिखी हैं । बांदा की किसी भी स्मृति में वे सबसे महत्व के दस्तावेज हैं । पहली
किश्त में नागार्जुन की केदार पर लिखी कविता –“ ओ
जन-मन के सजग चितेरे “ दी थी । आज केदार की कविता –“ नागार्जुन के बांदा आने पर “ दे रहे हैं । कल से
स्मृति अध्याय शुरु होंगे ।
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